Monday 5 January 2015

स्याह अंधेरा या घनघोर रात हमेशा अच्छी सुबह की सूचक होती है..


भीतर जितने बैठे हैं, छोटे-बड़े विकार ।
साई तुम्हारे तेज से मिटें सभी अंधकार ।


साई का सान्निध्य ही जिंदगी के सारे विकार दूर कर देता है। यदा-कदा जब मानुष अपने दोष समझने को तैयार नहीं होता था, तब बाबा सजीव उदाहरणों के जरिये उसकी भ्रष्ट मति को ठिकाने पर लाते थे। यानी बुरी संगत से अच्छाई की ओर गमन भी तो अच्छी सुबहा का सूचक हुआ कि नहीं!

 बाबा का मानना रहा है कि, सुख-दु:ख हमेशा साथ-साथ चलते हैं। हम दु:खों से, तकलीफों से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं। यदि हम उनके आगे नतमस्तक होते हैं, तब परेशानियां और बढ़ती हैं। इसलिए उनका मुकाबला करना ही सबसे बेहतर विकल्प होता है। आंख मूंद लेने से समस्यायें ओझल नहीं होतीं। यह भ्रम हमें अपने अंदर से निकालना है। समस्याओं की आंख में आंख गड़ाकर उन्हें ललकारना है। उनसे पार पाना है।

सोते रहने से कभी सबेरे का भाव पैदा नहीं हो सकता। मनुष्य इसलिए सोता है, ताकि अगली सुबह वो तरोताजा होकर उठे और एक नई सोच के साथ अपने अगले कर्मों का सार्थक कर सके। तन-मन की शांति के लिए निंद्रा आवश्यक है, लेकिन हमें अपने संकल्पों को नहीं सुलाना है। कहते हैं रात यदि अधिक काली हो जाए, तो मानना चाहिए कि सबेरा पास ही है। स्याह रात का अंतिम पहर, जब सबेरा होने को होता है, सूरज की पहली किरण निकलने को आतुर होती है, उसे ब्रह्म मुहूर्त कहा जाता है।

यह वो समय होता है, जब देव उठते हैं। वैसे देव कभी नहीं सोते। क्योंकि वे तो एक संकल्प हैं। वे ऊर्जा हैं, जो कभी समाप्त नहीं होती। जैसे कभी सूर्य नहीं ढलता, वो सिर्फ पृथ्वी के घूमने पर हमारी आंखों से ओझल हो जाता है। वो तो अपनी जगह स्थिर है। चक्कर तो पृथ्वी लगा रही है, ताकि हम अंधेरों का अनुभव कर सकें। रोशनी लुप्त होने पर हमें कैसा महसूस होता है, उसका आकलन कर सकें। ठीक उसी प्रकार देव कभी सोते नहीं है। देव के मायने हमारी ऊर्जा से है। सकारात्मक सोच से है। हमारे संकल्पों से है। साईं इन्हीं सब चीजों का पर्याय हैं।

सरल परिभाषा में समझें तो ब्रह्म और भ्रम में दोनों मिलते-जुलते शब्द हैं। ब्रह्म मूहूर्त में जब सूर्य की पहली किरण फूटती है, तो वो हमारे सारे भ्रम दूर कर देती है। भ्रम यानी अंधकार। वो अंधकार, जो हमारे मन-मस्तिष्क में घर किए बैठा रहता है। नींद भी एक भ्रम है। हमें लगता है कि हम सो रहे हैं, लेकिन असल में सोचिए क्या वाकई ऐसा होता है? हमारा ह्दय क्या धड़कना बंद कर देता है? क्या हमारा दिमाग चलना बंद कर देता है। हम सोते वक्त भी करवट बदलना नहीं भूलते। सोते वक्त भी हमें प्यास लगती है। पेट में अन्न का दाना न होने पर भूख लगती है। मूत्र आने पर हम स्वत: उठ जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? वो इसलिए क्योंकि सोना एक भ्रम है। जैसे एक बाइक चाबी न लगाने पर शांत खड़ी होती है, लेकिन वो मृत नहीं होती। चाबी लगाने और एक किक मारते ही वो कार्य करने लगती है। ठीक वैसी ही स्थिति हमारी होती है। हम सोने से पहले दिमाग से चाबी निकालकर बाहर रख देते हैं। चाबी निकलते ही हमारा मन-मस्तिष्क शांत हो जाता है। तंत्रिका-तंत्र में विचरण कर रहे विचार सुप्त अवस्था में चले जाते हैं। सबकुछ सुप्त होते ही हमें सुकून की नींद आती है। अगर हम चाबी निकाले बगैर सोने की कोशिश करेंगे, तो दिमाग चलता रहेगा। दिमाग चलेगा, तो हमें नींद कैसे आएगी?

यानी ब्रह्म मुहूर्त प्रकृति प्रदत्त एक अद्भुत किक है और सूर्य की किरण एक आलौकिक चाबी। सुबह होते ही दोनों हमें सक्रिय कर देते हैं। अब यह हमकर निर्भर करता है कि, हम दिन की शुरुआत नई मंजिल से करें, नई सोच के साथ शुरू करें, या पिछले दिन का बहीखाता खोलकर बैठ जाएं।

जब हम घर से गाड़ी निकालते हैं, तो उसे कपड़े से साफ करते हैं। ठीक वैसे ही हमें उठते ही दिलो-दिमाग की सारी गंदगी साफ कर देनी चाहिए। जैसे हमें दांत साफ करते हैं, पेट साफ करते हैं और स्नान करते हैं। साई बाबा हमारे जीवन की वही चाबी हैं, वही किक हैं, गंदगी साफ करने का वही तौर-तरीका हैं। प्रात:काल उनके स्मरण मात्र से सारे प्रयोजन अच्छे तरीके से होते चले जाते हैं।

भोर की पहली किरण पुकारे, नाम तेरा देवा/ जागो साई देव हमारे.... 

बाबा के साथी थे; परमभक्त थे तात्या कोते पाटिल और भगत म्हालसापति। मालसापति बाबा के पहले भक्त थे। तीनों एक साथ सोते थे। उनके सिर अलग-अलग दिशाओं में होते थे, लेकिन नीचे पैर एक-दूसरे से संपर्क में रहते थे। जैसे एक छोटा बच्चा अपनी मां या पिता के पैर पर पैर रखकर सोता है। तात्या 14 वर्षों तक अपने माता-पिता को घर पर छोड़कर मस्जिद में निवास करते रहे। लेकिन बाद में जब उनके पिता की मृत्यु हुई, तो बाबा ने उन्हें स्वयं वापस घर भेजा, ताकि वे अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सकें।
 
वे ऐसा क्यों करते थे? कुछ रहस्य गूढ होते हैं, जैसे ब्रह्मांड। कुछ रहस्य ईश्वर हमें खुद बताना नहीं चाहता, क्योंकि सारे रहस्य खुलने के बाद जीवन का रोमांच खत्म हो जाएगा। आगे करने को कुछ नहीं बचेगा। नीरसता अंदर घर कर जाएगी। जब कुछ नया नहीं बचेगा, तो सबकुछ पुरानी बातों, चीजों के लिए क्यों जीया जाए?

हम ईश्वर की स्तुति करते हैं। मंत्रोपच्चार करते हैं। भजन गाते हैं। अलग-अलग तौर-तरीकों, अपने-अपने रीति-रिवाजों, परंपराओं, संस्कृति, भाषा-बोली आदि के मुताबिक ऊपरवाले से प्रार्थना करते हैं। तरीके सबके अलग-अलग होते हैं, लेकिन मंशा केवल एक-हे ईश्वर, या खुदा, हे गॉड...हमारे जीवन में हमेशा खुशियां लाते रहना, परेशानियों से उबारना, अच्छे कामों के लिए प्रेरणा देना।

इस प्रार्थना में हर बार कुछ न कुछ नया होता है। हमें नहीं पता होता है कि, आगे क्या होने वाला है। यह रहस्य हमें जीवित रखता है। इसे यूं समझें। यदि हमें यह पता हो कि, हमारे जीवन में आगे क्या घटने वाला है। कब, किस वक्त और कहां कौन-सी घटना होगी, तो फिर जीवन कैसा होगा? हमें पता हो कि फलां दिन, फलां जगह और फलां वक्त हमारे प्राण पखेरू उड़ जाएंगे, तो क्या हमारे जीवन में कोई खुशी बचेगी? किसी रोमांच के लिए कोई स्थान होगा? बिलकुल नहीं।

रहस्य ही हमें जिंदा रखते हैं। हम प्रार्थना ही इसलिए करते हैं, क्योंकि हमें नहीं मालूम होता कि आगे क्या होने वाला है। हां, लेकिन हमें यह अवश्य पता होता है कि, आगे कुछ होने वाला जरूर है। जैसे, हम बच्चे की परीक्षा के दौरान ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि, हे ईश्वर मेरे बच्चे की परीक्षा अच्छी रहे। यानी यह तो हमें पता है कि, परीक्षा होनी है, लेकिन यह नहीं मालूम रहता कि, परीक्षा में कैसे-कैसे सवाल आने वाले हैं?

ईश्वर की रचना भी कुछ ऐसी ही है। उसने अपनी रचना में कुछ रहस्य हमेशा बरकरार रखे हैं, जिससे हमारे जीवन में नीरसता न आए। हम हमेशा कुछ नये की तलाश में अपना जीवन बिताते रहें। 

बाबा और उनके भक्त तात्या तथा मालसापति के तीन अलग-अलग दिशाओं में सिर रखकर, जबकि पैर एक-दूसरे से संपर्क में रखकर सोना इसी रहस्य का एक हिस्सा है। बाबा का संदेश निश्चय ही यही होगा, वे और उनके भक्त अलग-अलग दिशाओं में सिर रखकर अवश्य सो रहे हैं, लेकिन जो एक दिशा खाली बचती है। वो इसलिए ताकि जीवन में एक रहस्य बरकरार रहे। यानी तीन दिशाओं में क्या है, तीनों ने खोज लिया, लेकिन एक रिक्त पड़ी दिशा का रहस्य खोजना बाकी है।
पैर से पैर संपर्क में रखते हुए सोने का तात्पर्य यही होगा कि, दैनिक जीवन में हम, हमारा घर-परिवार, मित्र और सगे-संबंधी भले ही अलग-अलग दिशाओं में कार्यशील हों, अग्रशील हों, चलायमान हों, लेकिन हमें संपर्क नहीं तोडऩा। रिश्तों का स्पर्श हमेशा बनाए रखना है। यही संपर्क-एकजुटता हमें नये रहस्यों से पर्दा उठाने में ऊर्जा देती है, शक्ति देती है।

बाबा को रोज सुबह तात्या हिलाकर उठाते थे। जैसा कि, हम जानते हैं बाबा एक ऊर्जा हैं। एक विचार हैं। एक मार्गदर्शक हैं। इसलिए तात्या बाबा के रूप में अपने लिए एक ऊर्जा अर्जित करते होंगे। अपने विचारों को जागृत करते होंगे। अपने लिए मार्ग चुनते होंगे।
ठीक वैसे ही हमें भी सुबह उठते ही अपने मन-मस्तिष्क को हिला-हिलाकर जगाना होगा।

बाबा के उठने के साथ ही मालसापति और तात्या अपने-अपने घरों को चले जाते थे। उस वक्त मस्जिद में किसी को प्रवेश की अनुमति नहीं होती थीं। बाबा उठने के बाद सबसे पहले धूनी की तरफ मुख करके बैठते थे। कुछ बुदबुदाते थे, हवाओं में कुछ इशारे करते थे। कोई समझ नहीं पाता था कि उनके इशारे किसके लिए हैं, वे किससे बात कर रहे हैं?

यह एक रहस्य था, जो उन्हें आनंद प्रदान करता था। हम भी जब सुबह उठकर सूर्य देवता को जल चढ़ाते हैं। ईश्वर की आराधना में मंत्रोप्चार करते हैं, भजन करते हैं। उस वक्त किसी भी नन्हे बच्चे के लिए हम अजूबा-सा प्रतीक होते हैं। वो सोचता है कि, यह क्या हो रहा? ठीक वैसी ही स्थिति इनसान की होती है। एक बच्चे-सी। उसे नहीं पता होता कि, ईश्वर की लीला किस प्रयोजन के लिए है?
लेकिन हम इतना अवश्य जानते हैं कि, ईश्वर जो भी करता है या कर रहा है, वो मानव कल्याण के लिए है। यह संसार उसी की रचना है, इसलिए उसका हर प्रयोजन, हर लीला कुछ नयापन लाने की कोशिश है, ताकि मानव के जीवन में आनंद बना रहे।

जैसे, रोते हुए बच्चे को मनाने के लिए हमें किस्म-किस्म के जतन करने पड़ते हैं। मनुष्यरूपी रचना में निरंतर कुछ नया बना रहे, इसलिए ईश्वर भी अपने अवतारों के जरिये कुछ न कुछ नया करता रहता है। बाबा भी हमेशा मानवजाति के आनंद बाबत कुछ न कुछ नया करते रहते हैं। उनकी लीलाएं हमारे लिए एक रहस्य होती हैं, जो आनंद की अनुभूति देती हैं।

तब की एक कहानी.... 
 साई ने समय-समय पर अपने भक्तों को ब्रह्म ज्ञान दिया है, लेकिन वो ही इसे आत्मसात कर पाया; जिसने अंधकार और प्रकाश के बीच का सटीक फर्क महसूस किया। अंधकार सिर्फ सूरज ढलने के बाद ही नहीं होता; कई विकारों के कारण भी हमारी जिंदगी में अंधेरा व्याप्त रहता है। दु:ख, चिंताएं और अपना-तेरा का भाव भी एक प्रकार से अंधेरा है।

एक बार कोई व्यक्ति बाबा के पास ब्रह्म ज्ञान लेने पहुंचे। लेकिन उनके मन में अपने धन-बल का अभिमान भरा पड़ा था। आज भी हजारों लोग बाबा का सत्संग सुनने जाते हैं। लेकिन वो जैसे मन से आते हैं, वैसे ही मन से लौटते भी हैं। जब तब आप अपनी इंद्रियों पर काबू नहीं करेंगे, अहंकार नहीं छोड़ेंगे, तब तक ब्रह्मज्ञान हासिल नहीं होगा।

एक क्रिकेटर जब मैदान में उतरता है, तो उसमें मन में ना-ना प्रकार के भाव चलते हैं कि; इस बार तो वो खूब रन बनाएगा; सामने वाली टीम की धज्जियां उड़ाकर रख देगा। या ऐसी बॉलिंग करेगा कि; सामने वाली टीम के खिलाड़ी पानी मांगते नजर आएंगे। लेकिन जब वो खेलना शुरू करता है, तब वे हकीकत से दो-चार होता है। यहां उसकी हुनर, संयम, एकाग्रचित्तता की परीक्षा होती है। मैदान में अहंकार नहीं यही चीजें काम आती हैं। खेलते समय ही उसे ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है कि; अरे अब तक वो सोचकर आया था, मैदान में ऐसा तो कुछ भी नहीं हो रहा। बाबा अपने चमत्कारों और बातों-बातों में ब्रह्मज्ञान दे जाते थे। जिसने सीखा; उसका जीवन धन्य।...और जो अहंकारवश नहीं सीख पाया, वे अंधकार में ही फंसा रहा। सूर्य देवता को दोष देता रहा कि; अंधेरा उनके अस्त होने से हुआ। सूर्य का अस्त होना ही अंधेरे का कारण बना।
बाबा ने ब्रह्मज्ञान पाने के 10 तरीके बताएं हैं-
1.मुमुक्षुत्व: मतलब आप अपने अंदर बुराइयों से बाहर निकलने की तीव्र इच्छा और साहस पैदा करें।
2.विरक्ति: मतलब मोह-माया से छुटकारा पाने की अभिलाषा का भाव। मोहभंग।
3.अंरर्मुखता: मतलब अपने अंदर झांकने की कोशिश।
4. पाप से दूरी: मतलब स्वार्थ और धन-बल के दुरुपयोग से पाप जन्मते हैं। इनसे दूरी बनाना जरूरी है।
5. सही आचरण : मतलब झूठ-फरेब,ईष्र्या आदि से विरक्ति।
6.नित्य-अनित्य वस्तुओं की पहचान: मतलब भोग-विलासिता की चीजें नित्य; जबकि ईश्वर की भक्ति अनित्य चीजें हैं। हमें इनका सही प्रयोग-उपयोग करना आना चाहिए।
7.मन पर लगाम: मतलब अगर हम अपने मन या इंद्रियों पर काबू नहीं पा सके, तो ब्रह्मज्ञान पाने सारे जतन व्यर्थ हैं।
8. पवित्र भाव: कोई भी अच्छा कार्य पवित्र भाव से करने पर ही पूरा होता है।
9. गुरु का महत्व : मतलब बगैर गुरु के हमें कोई भी ज्ञान नहीं मिल सकता, ब्रह्मज्ञान तो दूर की कौड़ी है।
9. ईश्वर की स्तुति: समस्त ऊर्जाओं का स्त्रोत ईश्वर ही है। इसलिए मनुष्य ईश्वर के रूप में ऊर्जा को ही पूजता है।

बाबा इन दसों गुणों के भंडार थे, इसलिए जो भी शुद्ध आचार-विचार के साथ उनके संपर्क में आता है; उसे ब्रह्मज्ञान प्राप्त हो जाता है। ब्रह्मज्ञान यानी परोपकार, सेवाभाव के जरिये पुण्य प्राप्त करना, सुख हासिल करना।

1 comment: