Sunday 30 August 2015

साई से मांगते क्या हो..




बाबा की बातें करते-करते, श्री साई अमृत कथा में सुमीत पोन्दा ‘भाईजी’ बताते हैं कि साई बाबा के चमत्कारों से चमत्कृत उनके भक्त साई बाबा को भगवान ही मानते हैं. भगवान के रूप में सद्गुरु. भगवान के रूप में मित्र या सखा. भगवान के रूप में ही रक्षक. भगवान के रूप में एक अवतार.

भगवान की व्याख्या करने बैठें तो महसूस होगा कि भगवान आमतौर पर हम उन्हें मानते हैं जो सर्वशक्तिमान हैं और जिन्हें पूजने से बिगड़ी परिस्थितियां बन जाती है. अपने मतलब की बात हमें बड़ी जल्दी समझ में आती है. हम अपनी महत्त्व बुद्धि के चलते ये भी समझ जाते हैं कि किसे पूजने में हमारा फायदा है, कौन हमारी जल्दी सुन लेगा और इसी कारण से हम उन्हें पूजने भी लगते हैं. वो तो दयालु हैं. सुनते ही प्रेम और करुणावश पसीज जाते हैं. लेकिन फिर जब कभी ऐसा भी हो कि हमारे मन की उन्होंने नहीं सुनी या फिर हमारी मन-मर्ज़ी के हिसाब से हमारा काम नहीं बनाया तो फिर हम कोई दूसरा आराध्य ढूंढ लेते हैं.


पूजा का स्वार्थ से गहरा नाता है. स्वार्थ जितना दुष्कर, पूजा उतनी ही लम्बी. हमारी हथेलियाँ जुडती भी हैं तो लब पर दुआ होती है और दिल में चाहत. हे भगवान! या ख़ुदा! ओ’ गॉड! वाहेगुरु! मेरा काम बना दे. और क्यों न हो! हमारी अपनी सीमाएं होती हैं, अपनी कमज़ोरिया हम अच्छे से समझते हैं. इसीलिए तो ज़्यादातर भक्त भगवान से धन-दौलत, संतान, भौतिक सम्पदा, कोर्ट-कचहरी में सफलता, विवाह, नौकरी, इत्यादि ऐसी ही चीज़ों की मांग करते हैं. हम में से कुछ समझदार तो भगवान से सौदेबाज़ी भी कर लेते हैं. “इतने गुरुवार उपवास रखूँगा”, “सवा रुपये का प्रसाद अर्पण करूंगी”, “मेरा काम हो जाए तो इतने पैसे तेरे खजाने में डालूँगा”, “इतने सोमवार जल चढ़ाने आऊँगी”, वगैरह..

क्या मेरा साई, मेरा भगवान इन सब का भूखा है? क्या वो सौदेबाज़ है कि आप अगर उसे कुछ चढ़ा देंगे तो वो आपका ऐसा काम भी कर देगा जो अनीतिगत है या कुछ ऐसा भी आपको दे देगा जिस पर आपका कोई अधिकार ही नहीं है? साई तो भाव का भूखा है. वो तो आपके भाव देखता है. कभी ऐसा भी कह कर देखिएगा साई से कि आपका काम हो या न हो आप उसके दर पर माथा टेकेंगे, या आप इतने बेबस और लाचारों की मदद करेंगे. साई से शर्त मत लगाओ. काम हो या न हो, जो संकल्प मन से किया है, उसे पूर्ण करना. फिर देखो मेरे साई का जलवा. जो तुम्हारी किस्मत में है वो तो मिलकर रहेगा, मेरे साई ने कृपा बरसा दी तो वो भी मिल जायेगा जो तुम्हारी किस्मत में नहीं है. वो तुम्हारा समर्पण देखता है.
जो पैसे तुम चढ़ाने की बात कर रहे हो, मत भूलो कि, वो तो तुम्हे उसकी कृपा से ही मिले हैं. तुम उसे क्या दोगे और कितना दोगे? जब उसकी कृपा मिल जाती है तो वो हमें हमारी औकात से कहीं ज़्यादा देता है. हमारी झोलियाँ छोटी पड़ जाती हैं. हमारे साथ दिक्कत ये है कि हम अपने हिसाब से मांगते हैं और वो अपने हिसाब से देने को आतुर बैठा है. जो वो देना चाहता है, हम मांगते ही कब है!  

बार-बार कुछ तुच्छ मांगने से अच्छा है कि उससे सिर्फ इतना ही कहें कि साई, तुझे मालूम है कि मेरे लिए क्या अच्छा है. जो तुझे ठीक लगे वो कर देना. अगर तकलीफ़ देनी ही हो तो मेरा हाथ मत छोड़ना. वज़न देना ही हो तो पीठ मज़बूत कर देना. अगर तेरी कृपा और साथ से, मैं इन सब से निकलकर एक बेहतर इंसान बन सकता हूँ, तो बेशक मैं तेरी शरणागत हूँ. तू जो चाहे मेरा करे. मेरा साथ कभी मत छोड़ना. तेरा हाथ हमेशा मेरे सिर पर रहे. अपने गले से लगा कर रखना. मैं कभी फिसलूँ भी तो मुझे थाम लेना. तेरी राह मैं कभी न छोडूं.

वो भी तुम्हे छोड़ना नहीं चाहता. कभी उस पर, अपने भाव पर भरोसा तो रखकर देखो! फिर देखो कि साई क्या और कैसे करता है. तुम्हारी चिंताएँ हर लेगा. तुम्हे पलकों में सजाकर रखेगा. बिन मांगे तुम्हे वो सब देगा जिसकी तुमने कल्पना भी नहीं की होगी. और फिर जब वो ये परख लेगा कि उसकी इन सब रहमतों के बाद भी तुम नहीं बदले हो तो वो तुम्हे अपना स्वरुप भी दे देगा. प्रेम, करुणा, विवेक, सदाचरण, परमार्थ की प्रेरणा और सामर्थ्य, धीरे-धीरे तुम्हारी झोली में आकर गिरने लगेंगे. यह सब तो तुमने नहीं माँगा था. स्वार्थी से परमार्थी बन जाओगे. बस अपनी मांगो का स्वरुप बदल दो और उसमें विश्वास रख, सब्र से काम लो.

मेरा साई तो देने के लिए ही बैठा है..

बाबा भली कर रहे..

2 comments: